तेरा बीमार मेरा दिल - 1 Anjali Vashisht द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तेरा बीमार मेरा दिल - 1

" इससे बड़ा अनादर क्या होगा हमारा आद्रित राय । तुम्हारी लड़की भरे मंडप से भाग गई है । बारात बाहर दुल्हन के इंतजार में है लेकिन वो शायद किसी और के साथ मुंह काला करके निकल गई है । अरे थोड़ी सी तो शर्म करो । अभी भी तुम किस मुंह से मेरे सामने खड़े हो । अरे अभी तक तो तुम्हे चुल्लू भर पानी में डूबकर मर जाना चाहिए था "

नवीन चौहान ने गुस्से से सामने खड़े आद्रित राय से कहा जो हाथ जोड़े और सिर झुकाए खड़े थे । उनका सिर लज्जा से झुक गया था । सामने खड़े नवीन की कड़वी बातें उनके सीने को छलनी सा कर रही थी ।

" अपनी जुबान संभालो नवीन चौहान " एक नौजवान लड़का गुस्से से उबलते हुए बोला और आगे बढ़ने लगा तो आद्रित ने उसे रोक लिया ।

फिर इशारे से इंकार में सिर हिला दिया । लड़का मुट्ठी कसे अपनी जगह पर ही रुक गया ।

" संभालो अपनी औलाद को । एक भाग गई है और दूसरा आंखें दिखा रहा है नवीन चौहान को । इस बेइजती को मैं याद रखूंगा आद्रित राय । और हां , इसका खामयाजा भी तुम लोगों को भुकतना होगा , बर्बाद कर दूंगा तुम्हे । तुमको भी देख लेंगे और उस लड़की को भी " बोलते हुए प्रत्युष ने उनकी तरफ उंगली तान दी ।

आद्रित ने अपने सिर से अपनी पगड़ी उतारी और बोले " हम शर्मिंदा हैं । आप जो कहेंगे हम करने को तैयार हैं , हो सके तो हमे माफ कर दीजिए । चाहें तो अपनी इज्जत आपके कदमों में रख देते हैं " बोलते हुए उन्होंने पगड़ी को नवीन के पैरों के पास रख दिया ।

नवीन ने गुस्से से पगड़ी को लात मार दी और बोले " थूकता हूं मैं इस इज्जत पर " बोलकर वो गुस्से से बाहर निकल गया ।

आद्रित जी वहीं बैठे बैठे रो दिए । उनकी आंखों से आंसुओं की बूंदें लगातार निकलने लगी । उनकी धर्म पत्नी रत्ना जो उनके ठीक पीछे ही खड़ी थी , आकर उनके बगल में बैठी और उनके कांधे पर अपना सिर टिकाकर रोते हुए बोली " ये सब क्या हो रहा है जी । किन हालातों में फंस गए हैं हम "

दोनो ही रो रहे थे फर्क सिर्फ इतना था कि रत्ना के रोने में आवाज थी और आद्रित खामोशी में रो रहे थे।

वहीं खड़ा उनका बेटा जागृत अभी भी गुस्से से भरा हुआ नवीन के बारे में सोच रहा था । जो वो करके गया था ये सब उसके सीने पर खंजर की तरह चुभ रहा था।

" सब बर्बाद हो गया रत्ना " बोलकर उन्होंने कसकर आंखें मूंद ली ।

" मुझे विश्वास है हमारी राधिका ऐसा नही कर सकती आद्रित । वो समझती है हालातों को । वो नही भाग सकती "

रत्ना ने कहा तो जागृत बोला " सच में मां ? आप चाहती हैं कि वो यहां रुकती । ये शादी नही सौदा हो रहा था उसका । अच्छा हुआ भाग गई वरना इन जैसे लोगों के घर में जाती तो जी नहीं पाती मेरी बहन ।

और वैसे भी एक 19 साल की लड़की की शादी आप लोग अपने मतलब के लिए कैसे करवा रहे थे ? मुझे भी शादी से एक दिन पहले बताया जा रहा है कि मेरी छोटी बहन की शादी की जा रही है "

आद्रित का चेहरा जो पहले ही झुका हुआ था जागृत की बात सुनकर और भी ज्यादा झुक गया ।

रत्ना उसे देखते हुए बोली " तुम्हे समझ में भी आ रहा है तुम क्या कह रहे हो । हम अपनी मर्जी से उसकी शादी नही करवा रहे थे । मजबूर कर दिया गया था हमे "

जागृत गुस्से से बोला " इन लोगों को तो मैं छोडूंगा नही "

" कुछ नही कर पाओगे तुम " आद्रित ने कहा और कमरे की दीवार पर लगी राधिका की तस्वीर को देखते हुए बोले " अभी तो मुझे फिक्र राधिका की हो रही है । ना जाने कहां चली गई वो । मुझे नही लगता वो खुद से भाग सकती है । पर अगर भागी है तो बस वो इन लोगों के हाथ ना लगे वरना ना जाने क्या करेंगे । चौहान साहब का बेटा कहीं उसके साथ कुछ गलत ना करे "

वो सोच ही रहे थे कि तभी बाहर से तोड़ फोड़ और गोलियां चलने की आवाज आने लगी । तीनों जल्दी से कमरे से बाहर निकल गए ।

घर की बैठक में सब लोग डरे सहमे से खड़े थे।

" बाहर निकल आद्रित " चिल्लाते हुए एक लड़का हाथ में बंदूक पकड़े उपली मंजिल की तरफ देख रहा था।

उसने दुल्हे की शेरवानी पहनी हुई थी । साफ था कि वही दूल्हा था जिसका नाम प्रवीण चौहान था । उसके ठीक पीछे नवीन चौहान भी खड़ा था ।

आद्रित सामने आए तो प्रवीण ने उनके उपर बंदूक तान दी और बोला " हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी इतना बड़ा खेल खेलने की । तुम्हारी बेटी का रिश्ता मांगकर एहसान कर रहे थे तुम्हारे ऊपर । शुक्र मानते कि तुमसे ऐसा रिश्ता जोड़ रहे थे वरना थूकते भी नही तुम जैसों के उपर ।

पर इतना सब करने के बाद भी तुमने अपनी लड़की को ही भगा दिया । इतनी बड़ी बेइजती की हमारी " बोलकर उसने गोली चला दी जिसका निशाना आद्रित थे ।

जागृत ने गोली चलते देखा तो झट से आद्रित को साइड करने लगे लेकिन इतने में गोली आकर उनकी बाजू पर लग चुकी थी । आद्रित जोर से चिल्ला दिए ।

" पापा " " आद्रित " बोलते हुए जागृत और रत्ना दोनो ने आद्रित को पकड़ लिया । जागृत बेहद गुस्से से प्रवीण को देखने लगा । वो आगे बढ़ने लगा तो आद्रित ने उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लिया ।

जागृत ने उनकी तरफ देखा तो वो दर्द से कराह रहे थे । आद्रित जानते थे कि प्रवीण जागृत पर गोली चलाने से भी पीछे नहीं हटेगा इसलिए वो उसे आगे नहीं जाने देना चाहते थे ।

तीनों ही बेबस थे। वो सिवाय प्रवीण के गुस्से को देखने के और कुछ नही कर सकते थे ।

वहां खड़ी भीड़ में अफरा तफरी मच गई ।

प्रवीण चिल्लाते हुए बोला " कोई हिलेगा नही , जो हिला उसकी मौत लिखी है आज "

उसकी धमकी सुनकर सब लोग अपनी जगह पर ही जम गए ।

प्रवीण फिर से आद्रित पर गोली चलाने लगा तो नवीन ने आकर उसे रोक लिया और बंदूक को छत की तरफ घुमा दिया ।

प्रवीण ने लगातार सारी गोलियां चला दी थी जो छत में जाकर लगी थी ।

" बस बस , शांत हो जाओ । और गुस्सा नही । अभी कुछ नही करो , कोई मर मरा गया तो दिक्कत हो जायेगी । चलो यहां से । बाद में देख लेंगे अच्छे से " बोलकर नवीन उसे ले जाने लगे ।

प्रवीण गुस्से से सांसें लेते हुए बोला " ढूंढ लूंगा उस लड़की को भी । कहां जायेगी भागकर और जब मिलेगी तो ऐसी सजा दूंगा कि रूह कांप जायेगी उसकी " बोलकर वो गुस्से से बाहर निकल गया ।

उसी के साथ नवीन और उनके साथ आए आदमी भी वहां से निकल गए । धीरे धीरे पूरा घर खाली हो गया ।

सब लोग राधिका के उपर लांछन लगाकर जा रहे थे । कोई बदचलन कह रहा था तो कोई कलमुही । कोई चरित्रहीन कहकर गया तो कोई कलंकिनी । ना जाने कितनी ही अपमानित कर देने वाली बातें लोग उसके लिए कहते जा रहे थे ।

आद्रित रत्ना और जागृत के कानों में सबकी बातें जा जरूर रही थी लेकिन वो किसी को जवाब नही दे रहे थे ।

दूसरी तरफ :

एक बड़े से कमरे में मखमल की मुलायम चादर से लिपटे बिस्तर पर एक लड़की दुल्हन के लिबास में लिपटी , लेटी हुई थी । वो बेहोश थी । मांग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र था । उसका लिबास बता रहा था कि उसकी शादी हो चुकी थी ।

तभी कमरे का दरवाजा खुला और एक लंबा चौड़ा आदमी कमरे के अंदर आया ।

चौड़ा सीना जिसमे 8 pack abs थे , सुडौल और कसा हुआ गठीला बदन । वो किसी बड़े परदे के कातिलाना हीरो से कम नहीं लग रहा था । उम्र में वो करीब 29 साल का था ।

चेहरे पर हल्की दाढ़ी , सलीके से बनाए गए बाल । गहरी काली आंखें और गहरे भाव उसे रहस्मयी बना रहे थे । काला सूट पहने वो बहुत अट्रैक्टिव नजर आ रहा था । ऐसा लड़का जिसे देखने भर से ही हर किसी लड़की को उसे पाने की लालसा उत्पन्न हो जाए ।

उसने दरवाजा बंद किया और एक ठहराव के साथ आगे लड़की की तरफ बढ़ गया ।

लड़की के नजदीक आकर वो गौर से उसके चेहरे को देखने लगा । गोरा बेदाग चेहरा , बड़ी बड़ी जुल्फें जो बिस्तर पर बिखरकर फैली हुई थी ।

काजल सनी आंखें , जिनके ऊपर बड़ी बड़ी पलकों पहरा लगाए हुए थीं । उसे देखकर ऐसा लग रहा था मानो स्वर्ग की कोई अप्सरा आकर बेड पर लेट गई हो ।

लाल लहंगे में उसकी खुली कमर की झलक दिखाई दे रही थी । उसका net का दुपट्टा उसके सीने पर से सरक चुका था ।

लहंगे का ब्लाउज उसके बदन पर बिल्कुल सही नाप का था । गला गहरा होने की वजह से उसके उभार की आकृति बिल्कुल उभरकर दिखाई दे रही थी । उसे देखते हुए उस लड़के का गला सूखने सा लगा था ।

लड़के ने अपना कोट उतारा और एक झलक लड़की को देखकर बाथरूम के अंदर चला गया ।

कुछ देर बाद वो नहाकर टॉवेल लपेटे बाहर आया तो देखा कि वो लड़की अभी भी सो ही रही थी ।

उसे देखते हुए वो करीब आकर बैठ गया । आज दिन की यादें उसकी आंखों के सामने चलने लगी । जब एक सजे हुए घर में भरे मंडप में पहुंचने से पहले ही वो राधिका को उठा लाया था ।

वो पूरे वक्त बेहोश थी । उसकी बेहोशी में ही उसने उसके साथ शादी भी कर ली थी ।

कुछ सोचते हुए उसके होंठों पर गहरी मुस्कुराहट तैर गई । राधिका की कमर को देखकर कुछ पल वो खो सा गया फिर उठा और cupboard की तरफ कपड़े बदलने चला गया ।

करीब आधी रात के वक्त राधिका की नींद खुली तो उसने कसमसाते हुए अपनी आंखें खोल दी ।

सामने का नजारा देखा तो वो किसी बिल्कुल अंजान जगह पर थी । उसके सामने इतना बड़ा कमरा था जितना उसने कभी सपने में भी नहीं देखा था ।

जिस बेड के उपर वो अभी बैठी हुई थी वो भी बहुत बड़ा बेड था और बहुत मखमली था । लेकिन इन सबके बावजूद भी राधिका को वो सब देखकर अचंभित होने के बजाए घबराहट हो रही थी ।

वो झट से बेड से नीचे उतरी और आस आस देखते हुए वहां के बड़े से दरवाजे के सामने जाकर खड़ी हो गई । फिर उसे खोलने की कोशिश करने लगी ।

काफी कोशिशों के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो राधिका कमरे को देखते हुए बोली " ये हम कहां आ गए ? हमारी तो शादी होने वाली थी ना । तो हम इस अंजान जगह पर कब आए "

बोलते हुए वह पूरे कमरे में घूम कर वहां से बाहर निकलने के लिए जगह तलाशने लगी । उसके चलने से पायलों की आवाज पूरे कमरे में गूंजने लगी ।

अगले ही पल बड़ा सा दरवाजा खुला और किसी के कदमों की आहट राधिका के कानों में पड़ी । उसने पलटकर देखा तो सामने एक बिल्कुल अंजान चेहरा था ।

" कौन कौन हैं आप ? " राधिका ने पूछा तो आदमी बोला " उत्कर्ष सिन्हा " आदमी ने बहुत शालीनता से जवाब दिया । उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था ।

" हमें यहां क्यों लाए हैं ? "

उत्कर्ष उसकी तरफ कदम बढ़ाते हुए बोला " शादी की है आपसे । तो अपने साथ ही लायेंगे ना "

बोलकर वो उसके बिल्कुल सामने आकर खड़ा हो गया ।

" ये क्या बोल रहे हैं आप ? आपसे हमारी शादी कैसे हो सकती है ? हमारी शादी अधिराज जी से हो रही है "

उत्कर्ष मुस्कुराया और बोला " huh... भूल जाइए । अब आप हमारी हुई । और अब यही सच और यही शादी है "

" आप ऐसे कैसे कह सकते हैं । धोखा किया है आपने " राधिका ने चिल्लाते हुए कहा तो उत्कर्ष ने आंखें बंद कर ली ।

राधिका आगे बोली " किडनैप करके लाए हैं आप हमें । हम इस शादी को बिल्कुल नही मानते । हमे जाना है यहां से "

बोलकर वो दरवाजे की तरफ जाने लगी तो उत्कर्ष ने उसका हाथ पकड़ लिया ।

राधिका ने पलटकर देखा तो उत्कर्ष ने कसकर उसके हाथ को पकड़ा हुआ था । उत्कर्ष की शर्ट की बाजुएं चढ़ी हुई थी जिससे राधिका को उसकी फूली हुई नसें साफ दिखाई दे रही थी ।

" दुल्हन हैं आप हमारी , और अब से आप हमारे साथ ही रहेंगी । जितना जल्दी हो सके इस शादी को मान लीजिए । अच्छा होगा आपके लिए " बोलकर उसने राधिका को देखा ।

उत्कर्ष का लहजा बहुत ठंडा था । उसकी आवाज की ठंडक महसूस करके राधिका के बदन में सिहरन दौड़ गई थी ।

" आज शादी हुई है और कल सुहागरात होगी । आज आप सो सकती हैं । तो आराम कर लीजिए " बोलकर उत्कर्ष ने उसका हाथ छोड़ा और कमरे से बाहर निकल गया ।

राधिका बेवाक सी उसे देखती रह गई । उसे समझ नही आया था कि इतनी जल्दी ये सब क्या होने लगा था उसके साथ । कोई अनजाना आदमी इस तरह से कैसे हक जताने आ गया था ।

क्या फंस गई है राधिका ? क्यों की है उत्कर्ष ने उसे अगवा करके शादी ? क्या है कोई पुराना रिश्ता या की गई है कोई साजिश... ?


आपको कहानी की शुरुवात कैसी लगी कमेंट बॉक्स में जरूर बताना । और अपना बड़ा सा रिव्यू भी देना ताकि मनोबल बना रहे और साथ ही साथ like or comment भी करना ताकि मैं हर दिन एक चैप्टर देने के लिए प्रेरित होती रहूं ।